Hasya shayari in hindi | Vyang Shayari

Hasya Shayari

संगमरमरी ताजमहल देखकर शाहजहाँ का पोता बोला
दादा बावला ना होता अगर,अपने पास भी होता सोने का झोला

पूरी बोतल ना मिले फिर भी ठीक है , एक जाम ही सही
हम पड़े हैं जिनकी याद में ,उनके नाम पे हल्का जुकाम ही सही

तुमसा कोई दूसरा हुआ, तो रब से शिकायत होगी,
एक तो झेला नही जाता, दूसरा हुआ तो बगावत होगी

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कहते हैं कि वो की इश्क में लोगो की नींद उड़ जाती है,
हमसे भी मोहब्बत करे कोई ,हमें नींद बहुत आती है !!

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खिड़की खुली जुल्फ़ें बिखरी,दिल ने कहा दिलदार है
क्या करे इस फूटी किस्मत, दोस्त ने कहा नहाया हुआ सरदार है ..!!

बहुत चीज़ें लुट चुकीं हैं,हो गया हु बर्बाद,
तुमसे दिल लगाने के बाद
चीज़ें चेक करता हु ,
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद

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अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से
अकबर इलाहाबादी

पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए
अकबर इलाहाबादी

मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट
अकबर इलाहाबादी

हास्य व्यंग्य कविता- Hasya Vyang Kavita

Hasya Vyang Kavita
हास्य व्यंग्य कविता

लिपट भी जा न रुक ‘अकबर’ ग़ज़ब की ब्यूटी है
नहीं नहीं पे न जा ये हया की ड्यूटी है
अकबर इलाहाबादी

ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए
अकबर इलाहाबादी

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
अकबर इलाहाबादी

सरकार पर व्यंग्य : sarkar par vyang

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सरकार पर व्यंग्य

इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया
अकबर इलाहाबादी

बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
पोलाओ खाएँगे अहबाब फ़ातिहा होगा
अकबर इलाहाबादी

चुनावी शेरो शायरी – Chunavi shayari

कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया
अकबर इलाहाबादी

जब ग़म हुआ चढ़ा लीं दो बोतलें इकट्ठी
मुल्ला की दौड़ मस्जिद ‘अकबर’ की दौड़ भट्टी
अकबर इलाहाबादी

kaun kehta hai buddhe ishq nahi karte shayari

Kaun Kehta Hai Buddhe Ishq Nahi Karte,
Buddhe Ishq Karte Hai Magar Hum Shaq Nahi Karte

राजनीतिक व्यंग्य शायरी
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मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
शैख़ भी ख़ुश रहें शैतान भी बे-ज़ार न हो
अकबर इलाहाबादी

लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
सब तो जेनरेल हैं यहाँ आख़िर सिपाही कौन है
अकबर इलाहाबादी

Vyang Shayari : व्यंग्य शायरी

क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ
अकबर इलाहाबादी

आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए
अकबर इलाहाबादी

बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
शौक़ बहराइची

हास्य शायरी चुटकुले : Hasya Shayari Chutkule

हास्य शेरो शायरी
हास्य शायरी चुटकुले

हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब कभी घर का मुँह न देखा
कटी उम्र होटलों में मरे अस्पताल जा कर
अकबर इलाहाबादी

डिनर से तुम को फ़ुर्सत कम यहाँ फ़ाक़े से कम ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
अकबर इलाहाबादी

Hasya Kavi Shayari : हास्य कवि शायरी

कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की
ओहदों से आ रही है सदा दूर दूर की
अकबर इलाहाबादी

पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
साहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है
अकबर इलाहाबादी


बेगम भी हैं खड़ी हुई मैदान-ए-हश्र में
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
हाशिम अज़ीमाबादी

हक़ीक़त को छुपाया हम से क्या क्या उस के मेक-अप ने
जिसे लैला समझ बैठे थे वो लैला की माँ निकली
राग़िब मुरादाबादी

बेटे को चैक समझ लिया स्टेट-बैंक का
सम्धी तलाश करने लगे हाई रैंक का
मुस्तफ़ा अली बेग

samajik vyang : सामाजिक व्यंग

वाक़िफ़ नहीं कि पाँव में पड़ती हैं बेड़ियाँ
दूल्हे को ये ख़ुशी है कि मेरी बरात है
लाला माधव राम जौहर

शैख़ की दावत में मय का काम क्या
एहतियातन कुछ मँगा ली जाएगी
अकबर इलाहाबादी

चीन ओ अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा
रहने को घर नहीं है सारा जहाँ हमारा
मजीद लाहौरी

कहो तो क्यूँ है ये बनना-सँवरना
मिरी जाँ जान लोगे क्या किसी की
अज्ञात

मय-ख़ाना-ए-हस्ती का जब दौर ख़राब आया
कुल्लड़ में शराब आई पत्ते पे कबाब आया
अज्ञात

इस के बग़ैर लीडरी अपनी थी ना-तमाम
कुछ इस लिए भी जेल में जाना पड़ा मुझे
बशीर अहमद चंचल

लीडरी में भला हुआ उन का
बंदगी में मिरा भला न हुआ
मजीद लाहौरी

hasya Vachan

hasya shayri in hindi
हास्य व्यंग्य शायरी

कहा जो मैंने कि ‘ दिल चाहता है प्यार करूं’
तो मुस्कुरा के वो कहने लगे कि ‘प्यार के बाद’
अकबर इलाहाबादी

भरते हैं मेरी आह को ग्रामोफ़ोन में,
कहते हैं फ़ीस लीजिये और आह कीजिये
अकबर’ इलाहाबादी

ऐसी जन्नत को क्या करे कोई,
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
दाग़

मौत आने तक न आये अब जो आये हो तो हाय,
ज़िंदगी मुश्किल ही थी, मरना भी मुश्किल हो गया
‘फ़ानी’

हम हाल उन्हें यूं दिल का सुनाने में लगे हैं,
कुछ कहते नहीं, पांव दबाने में लगे हैं
‘हसरत’ मोहानी

आजकल ऐसे वफ़ादार बदल जाते हैं,
जैसे हर सुबह के अख़बार बदल जाते हैं
अशरफ’ मालवी